संस्कृति और विरासत
गंगा और यमुना दोआब में स्थित कानपुर देहात में पुरातात्विक महत्व के अति प्राचीन अवशेष बिखरे पड़े है। अकबर की शासन व्यवस्था का विस्तृत वर्णन अबुल फजल के ग्रन्थ ‘आइना-ए-अकबरी‘ में मिलता है। कानपुर के दक्षिण भाग मूसानगर, चपरघटा, भोगनीपुर, सिकन्दरा आदि स्थानों को मिलाती हुयी सड़क मुगल रोड नाम से प्रसिद्ध थी। मुगलकाल में जिले का दक्षिणी भू-भाग गुरूत्व केन्द्र में था। यमुना के किनारे ख्वाजाफूल में पत्थर का काफी चौड़ा और मजबूत कोट था अब फाटक और कोट ध्वस्त अवस्था में है तथा यहां से कुछ दूर यमुना किनारे पर बिलासपुर अपने नाम के परगने का सदर मुकाम था। इसके उजड़ने पर सिकन्दरा की उन्नति हुयी। उस समय के ग्राण्ड ट्रंक रोड पर होने से ही सिकन्दरा ने बिलासपुर को पछाड़ दिया। 1713 में बिलासपुर के पास स्थित अमरगढ़ पर मराठों ने अधिकार कर लिया। यहां से आगे पचैरा नामक स्थान जहां पुरानी गढ़ी के ध्वंसावशेष मिलते है, का नाम बदलकर इस्माइलनगर रख दिया गया था। यहां से कुछ दूर पर किशनपुर की गढ़ी भी गिर गयी है। किशुनपुर के पास कथरी गांव में कथरी अथवा कात्यायिनी देवी का प्रसिद्ध मन्दिर है, जिसकी आस-पास बड़ी प्रतिष्ठा है। इसी के आगे दिबैर, टेउंगा गढ़ी से 2 मील पर शाहपुर का प्राचीन ऐतिहासिक स्थान था। यहां की पत्थर की गढ़ी के पत्थरों को खोदकर कालपी के रेलवे पुल में लगाया गया। मुगलकाल में शाहपुर एक परगने का सदर मुकाम था। शाहपुर के पास उदईपुर व करियापुर में भी गढ़ियां थी। आगे चैरा नामक मुसलमानों का पवित्र स्थान है। इसके आगे दौलतपुर, रसूलपुर, नगवां, देवराहट में गढ़ियां व डेरापुर आदि स्थानों में भी गढ़िया थी।